सती प्रथा और अंधविश्वास ख़त्म करवाने वाले राजा राममोहन राय के बारे में आप कितना जानते हैं?
औरत को हमेशा से ही प्रथाओं में बंधने की कोशिश की गई है, परन्तु राजा राम मोहन राय के प्रयासों की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है. उन्होंने अपने आंदोलनों के माध्यम से औरतों को समाज के घिसे पीटे नियमों में बंधने से रोका.
पहले के ज़माने में लड़कियों की शादी 10-12 साल में ही कर दी जाती थी, उन्हें ज़्यादा पढ़ाने लिखने की भी आज़ादी नही थी. यह रामोहन राय ही थे जिन्होंने सामाज में रहते हुए उसी समाज के लोगों से लड़ा और यह प्रथा हटवाई. हालांकि अभी भी कई लोग है जो यह प्रथा निभाते है और अपनी बेटियों को छोटी उम्र में ही बियाह देते है.
कब तक यह समाज स्त्रीयों को दबाएगा, कब तक उन्हें उड़ने से रोक जाएगा.
कब होगी वह सुबह जिसके बाद किसी भी छोटी बच्ची के किस्मत में शादी का बोझ नही लिखा जाएगा.
राजा राममोहन राय का जन्म बंगाल में 1772 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. 15 साल की उम्र तक उन्होंने बंगाली, संस्कृत, अरबी और फ़ारसी पढ़ाई पटना (बिहार) से पूरी कर ली थी. उन्होने 1809-1814 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए भी काम किया. लेकिन जल्द ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और समाज की कुरीतियों के ख़िलाफ़ वो लोगों के बीच जागरुकता फैलाने का काम करने लगें.
राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का अगुआ और आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है. भारतीय सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में उनका योगदान काफ़ी महत्वपूर्ण है. वह ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रेरणास्रोत और बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे. उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की.
बाद में जाकर उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी छोड़ने का फैसला किया और समाज के उदार में जुट गए. उन्होंने खुद को देश की सेवा करने में लीन कर लिया. भारत की स्वतंत्रता दिलवाने के अलावा भी वह एक और लड़ाई लड़ रहे थे. उनकी दूसरी लड़ाई अपने ही समाज मे रह रहे लोगों से थी जो अंधविश्वास और कुरीतियों में जकड़े थे.
राजा राममोहन राय ने उन्हें झकझोरने का काम किया और बाल-विवाह, सती प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड, पर्दा प्रथा आदि का उन्होंने भरपूर विरोध किया. धर्म प्रचार के क्षेत्र में अलेक्जेंडर डफ्फ ने उनकी काफी सहायता की. देवेंद्रनाथ टैगोर उनके सबसे प्रमुख अनुयायी थे. आधुनिक भारत के निर्माता, सबसे बड़ी सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों के संस्थापक, ब्रह्म समाज, राजा राम मोहन राय सती प्रणाली जैसी सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
हमारे देश मे कई ऐसी प्रथाएं थी जिन्हें प्राचीन काल में ही खत्म कर दिया गया परन्तु अभी भी कई ऐसी जगह है जहां यह प्रथाएं अभी भी मान्य है. प्राचीन काल मे एक प्रथा थी कि यदि एक औरत के पति की मौत हो जाती है तो प्रथा के अनुसार उस औरत को भी अपने पति के साथ जलना (सती) होता था.
शायद इन प्रथाओं से लड़ने के लिए भी फिर एक बार कोई राजा राम मोहन बनेगा. जो समाज मे चल रहे ऐसे काले प्रथाओं को खत्म करने की एक नींव रखेगा. शायद फिर कोई आएगा ऐसे ही जो इन स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों को रोकेगा.
राजा राममोहनराय वह शख्सियत है जिन्होंने अपने आंदोलनों से सभी को एक वजूद दिया. जहां पहले महिलाओं का वजूद उनके पिता, उसके बाद पति और फिर बेटे से था, आज वही देश है लेकिन महिलाओं का वजूद खुद से बना है. हालांकि अभी भी समानता की लड़ाई जारी है क्योंकि अधिकांश मामलों में आज भी महिलाओं को अधिकार नहीं है.
महिलायें कितनी भी सफल हो जाए लेकिन क्यों वो रहती एक बाप पर बोझ ही हैं? क्यों उसे आज भी कहा दूसरे की अमानत जाता है?
- अनुकृति प्रिया
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